जब बेटी दिवस 2022 भारत का दिन आया, तो हर कोने में गूँजते रहे कि बेटियों का सम्मान कितना जरूरी है। यह साल का चौथा रविवार, 25 सितंबर को, पूरे देश में आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों ने इस बात को दोहराया कि बेटियाँ मात्र पारिवारिक खुशी नहीं, बल्कि सामाजिक प्रगति की मूलधारा हैं। इसके पीछे उभरा एक बड़ा कारण है – संयुक्त राष्ट्र की 2012 की पहल, जिसने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ‘बच्ची दिवस’ को स्थापित किया था।
बेटी दिवस का अंतर्राष्ट्रीय इतिहास
आधिकारिक तौर पर पहला अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस संयुक्त राष्ट्र ने 11 अक्टूबर 2012 को मनाया। तब से यह दिन दुनिया भर में लिंग असमानता से लड़ने के लिए एक मंच बन गया। भारत ने इस वैश्विक लहर को अपनाते हुए अपना विशेष दिन – बेटी दिवस – हर साल सितंबर के चौथे रविवार को निर्धारित किया। इस बदलाव का मुख्य उद्देश्य भारतीय संदर्भ में लड़कियों की स्थिति को उजागर करना और उन्हें सामाजिक‑आर्थिक रूप से सशक्त बनाना था।
भूतकाल से वर्तमान तक: भारत में बेटी की स्थिति
परम्परागत भारतीय समाज में बेटियों को अक्सर ‘घर के भीतर’ की जिम्मेदारी के रूप में देखा जाता था, जबकि बेटे को परम्परागत रूप से परिवार की संतानधारा माना जाता था। इससे कई बार बाल्यविवाह, दहेज प्रथा और यहाँ तक कि महिला भ्रूण हत्या जैसी गंभीर समस्याएँ उत्पन्न हुईं। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि 2020 में भारत में लगभग 21.2 लाख महिला भ्रूण गर्भपात हुए। यह आँकड़ा बेटियों के प्रति सामाजिक पक्षपात के निर्मम प्रमाण के रूप में सामने आया है।
बेटी दिवस के मुख्य कार्यक्रम और अभिव्यक्तियाँ
2022 में राजधानी नई दिल्ली में आयोजित विशेष समारोह में नरेंद्र मोदी ने कहा, “बेटियां केवल परिवार की शान नहीं, बल्कि राष्ट्र की प्रगति का मुख्य स्तंभ हैं।” इसी तरह विभिन्न राज्यों में स्कूलों और कॉलेजों में ‘बिल्ली की नोक पर बेटियों की शक्ति’ विषयक निबंध प्रतियोगिताएँ, सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ और महिला उद्यमी के साथ संवाद सत्र आयोजित हुए। सोशल मीडिया पर #BetiDiwas2022 हैशटैग ने 2 मिलियन से अधिक पोस्ट जनरेट कर, डिजिटल धारणाओं को भी नई दिशा दी।
विशेषज्ञों और सामाजिक समूहों की प्रतिक्रियाएँ
सामाजिक विज्ञान की प्रोफेसर डॉ. रीता शर्मा ने बताया, “बेटी दिवस केवल प्रतीकात्मक नहीं, यह नीति निर्माताओं को लैंगिक संतुलन पर फिर से विचार करने का अहम् अवसर है।” उन्होंने यह भी कहा कि इस जश्न को स्कूल पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए ताकि बचपन से ही लड़कों में समानता की भावना विकसित हो। दूसरी ओर, कुछ रूढ़िवादी समूहों ने कहा कि ऐसी घटनाएं ‘परिवारिक संरचना में बदलाव’ का खतरा पेश कर सकती हैं, जिससे सामाजिक सहजता पर प्रश्न उठते हैं।
भविष्य की दिशा और नीति प्रस्ताव
बेटी दिवस के बाद सरकार ने कई नई योजनाओं की घोषणा की। ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान को 2023 तक 1 करोड़ स्कूलों तक पहुँचाने का लक्ष्य रखा गया। इसके अतिरिक्त, राष्ट्रीय महिला आयोग ने एक स्वतंत्र आयोग स्थापित करने का प्रस्ताव रखा है, जो बालिका शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य के सभी पहलुओं की निगरानी करेगा। विशेषज्ञ मानते हैं कि ऐसी नीतियों को कार्यान्वित करने के लिए स्थानीय NGOs और स्वयंसेवी समूहों का सहयोग अनिवार्य है।
- अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस – 11 अक्टूबर 2012 (संयुक्त राष्ट्र)
- भारत में बेटी दिवस – प्रत्येक सितंबर का चौथा रविवार
- 2022 का मुख्य तिथि – 25 सितंबर
- मुख्य थीम – "बेटियों को सशक्त बनाना, समाज को परिवर्तनशील बनाना"
- सामाजिक सहभागिता – 2 मिलियन से अधिक सोशल पोस्ट, 500 से अधिक स्थानीय कार्यक्रम
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
बेटी दिवस का मुख्य उद्देश्य क्या है?
बेटी दिवस का मूल उद्देश्य समाज में लिंगभेद को कम करना, बेटियों के अधिकारों को सुदृढ़ करना और परिवार एवं राष्ट्र में उनके योगदान को सराहना है। यह दिन विशेष रूप से भारत में सामाजिक जागरूकता बढ़ाने के लिये आयोजित किया जाता है।
क्या भारत में बेटी दिवस अलग है या अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस से जुड़ा?
भारत में बेटी दिवस को प्रत्येक सितंबर के चौथे रविवार को मनाया जाता है, जबकि अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस 11 अक्टूबर को संयुक्त राष्ट्र द्वारा स्थापित किया गया है। दोनों का उद्देश्य समान है, परन्तु स्थानीय सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य के अनुसार समय भिन्न है।
बेटी दिवस की प्रमुख गतिविधियाँ कौन‑सी हैं?
स्कूलों में निबंध और कला प्रतियोगिताएँ, सरकारी और निजी संस्थानों द्वारा सम्मान समारोह, सोशल मीडिया अभियानों (#BetiDiwas2022) के साथ साथ स्थानीय NGOs द्वारा स्वास्थ्य और शिक्षा संबंधी कार्यशालाएँ आयोजित की जाती हैं।
बेटी दिवस के बाद सरकार ने कौन‑सी नई नीतियाँ पेश कीं?
‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान को 1 करोड़ स्कूलों तक पहुँचाने, राष्ट्रीय महिला आयोग के तहत विशेष बेटियों के अधिकारों की निगरानी करने के लिए एक स्वतंत्र आयोग स्थापित करने और राज्य‑स्तरीय ग्रांट योजनाओं के माध्यम से लड़कियों की स्कॉलरशिप बढ़ाने की घोषणा की गई।
सामाजिक स्तर पर इस दिन का क्या असर पड़ता है?
बेटी दिवस से परिवारों में बेटियों के प्रति सम्मान की भावना बढ़ती है, स्कूलों में लड़कों में समानता की जागरूकता विकसित होती है और मीडिया में लिंग‑समानता की चर्चा को मजबूती मिलती है, जिससे दीर्घकालिक सामाजिक बदलाव की नींव रखी जाती है।
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