असदुद्दीन ओवैसी का 'जय फिलिस्तीन' बयान: संसद में छिड़ी बहस
संसद सत्र के दूसरे दिन, एक अहम घटना ने सभी का ध्यान आकर्षित किया। देशभर के 542 में से 535 सदस्यों ने शपथ ली। इस शपथ ग्रहण समारोह के दौरान कई प्रमुख सदस्यों ने विशेष नारे लगाए, जिनमें कुछ को लेकर विवाद भी उत्पन्न हो गया। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने 'जय हिंद' और 'जय संविधान' का नारा दिया, जबकि हैदराबाद के सांसद और AIMIM के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने 'जय फिलिस्तीन' कहकर राष्ट्रव्यापी बहस को जन्म दिया।
ओवैसी का बयान और उसकी प्रतिक्रिया
ओवैसी ने शपथ की प्रक्रिया के दौरान 'जय भीम, जय एमआईएम, जय तेलंगाना, जय फिलिस्तीन, तकबीर अल्लाह-हू-अकबर' के नारे लगाए। जैसे ही उन्होंने 'जय फिलिस्तीन' कहा, भाजपा के सदस्यों ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई और इसे नियमों के खिलाफ बताया। उनका कहना था कि संसद में इस तरह के बयानबाजी की अनुमति नहीं होनी चाहिए। कई सांसदों ने इसे एक राजनीतिक एजेंडा के तहत किया गया कदम बताया और इसे असंसदीय करार दिया।
ओवैसी की सफाई
इस विवाद के बाद, ओवैसी ने ट्विटर पर सफाई देते हुए कहा कि वह पांचवीं बार सांसद के रूप में शपथ ले रहे हैं और हमेशा की तरह इस बार भी वह भारत के हाशिए पर रहने वाले समुदायों के मुद्दों को उठाते रहेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि हर भारतीय को अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता है और उन्होंने अपने विचारों को शांतिपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया है।
अन्य नारों पर भी विवाद
यह केवल ओवैसी का बयान नहीं था जिसने संसद में बवाल मचाया। भाजपा के बरेली सांसद चतरपाल गंगवार ने 'हिंदू राष्ट्र की जय' का नारा दिया, जिससे विपक्षी दलों ने आपत्ति जताई। समाजवादी पार्टी के अयोध्या सांसद अवधेश राय ने 'जय अयोध्या, जय अवधेश' कहा, और भाजपा की सांसद हेमामालिनी ने 'राधे-राधे' का उच्चारण किया। इन सभी नारों पर भी सदन में बहस छिड़ गई।
प्रोटेम स्पीकर की प्रतिक्रिया
प्रोटेम स्पीकर भारतरुहरी महताब ने स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि शपथ ग्रहण के दौरान कोई भी अतिरिक्त बयानबाजी रिकॉर्ड नहीं की जाएगी। उन्होंने सदन के सदस्यों को नियमानुसार शपथ लेने की सलाह दी और कहा कि केवल शपथ का स्वरूप ही रिकॉर्ड का हिस्सा बनेगा।
भविष्य की संभावनाएं
यह घटना दर्शाती है कि संसद में विचारों की विविधता और विभिन्न मुद्दों पर विभाजन का गहरा प्रभाव है। यह देखना दिलचस्प होगा कि भविष्य में इन मुद्दों पर क्या रुख अख्तियार किया जाता है और किस प्रकार इन पर चर्चा और विमर्श होता है। देश के राजनीतिक परिदृश्य में इस प्रकार की घटनाएँ जनमानस में भी बड़ी भूमिका निभा सकती हैं। ऐसे विवाद न केवल राष्ट्रीय स्तर पर, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी चर्चा का विषय बन सकते हैं।
संसद में इस प्रकार की घटनाएँ यह संकेत देती हैं कि हमारे चुने हुए प्रतिनिधि किस प्रकार से अपने विचार और मान्यताओं को प्रस्तुत करते हैं और इससे पूरे देश पर क्या असर पड़ता है। यह विवाद भी एक ऐसा ही मामला है जो भारत की राजनीतिक और सामाजिक संरचना पर प्रभाव छोड़ रहा है।
समाज के विभिन्न तबकों के प्रतिनिधि और उनकी राय जब संसद के पटल पर आती हैं, तो यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण होता है कि उनका प्रस्तुतिकरण न केवल संवैधानिक हो, बल्कि समानता और न्याय के सिद्धांतों का पालन भी करे। इस घटना ने एक बार फिर से यह प्रश्न उठाया है कि क्या हमारे चुने हुए प्रतिनिधि अपने निजी या पार्टी विचारधारा को शपथ ग्रहण जैसे महत्वपूर्ण अवसर पर प्रस्तुत कर सकते हैं।
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