एक अलग किस्म की प्रेम कहानी: Aap Jaisa Koi
अगर आप बॉलीवुड में वही पारंपरिक रोमांस देखने के आदी हो चुके हैं तो Aap Jaisa Koi आपको चौंका सकती है। विवेक सोनी निर्देशित इस फिल्म में R माधवन और फातिमा सना शेख की जोड़ी ऐसे किरदार में नजर आती है, जो सामान्य बॉलीवुड लव-स्टोरी के फ्रेम से बाहर है। माधवन बने हैं श्रीरेणु, एक 42 साल के संस्कृत शिक्षक, जो अब तक वर्जिन हैं और जमशेदपुर जैसे छोटे कस्बे में रहते हैं। दूसरी ओर, फातिमा यानी मधु बोस, एक 32 वर्षीय आधुनिक और बिंदास फ्रेंच टीचर, जो कोलकाता से है और अपनी आज़ादी को खुलकर जीती है।
फिल्म की शुरुआत दिलचस्प है - विपरीत सोच वाले दो लोग आकर्षित होते हैं। मधु बिना किसी झिझक के श्रीरेणु का शादी का प्रपोजल स्वीकार कर लेती हैं, जो भारतीय समाज के 'पारंपरिक शुद्धता' वाले वाले नज़रिये पर बड़ा सवाल खड़ा करता है। यहाँ से कहानी धीरे-धीरे उन सामाजिक और पारिवारिक दबावों की ओर बढ़ती है, जो आज भी खासकर महिलाओं के लिए रास्ता मुश्किल बना देते हैं।
पुराने सोच से टकराती नई पीढ़ी
श्रीरेणु के परिवार का माहौल कहानी के टोन को बदल देता है। उनके बड़े भाई (मनीष चौधरी) रुढ़िवादी सोच के प्रतीक हैं – नियंत्रित करने वाले, परंपराओं को थोपने वाले। मधु की आधुनिकता और खुद के फैसलों पर उनका विश्वास शृरेणु के घरवालों को खटकता है। इसी वजह से दोनों की नजदीकियाँ भी दूरी में बदलने लगती हैं। श्रीरेणु की भाभी (आयशा रज़ा) और बेटी के किरदार से समाज के उन हिस्सों की झलक दिखाई जाती है, जहाँ महिलाओं की इच्छाएं, इच्छाओं से कम मानी जाती हैं; सेक्सलेस शादी और करियर के सपनों तक भी रोक है।
फिल्म में माधवन और फातिमा की एक्टिंग की खूब तारीफ हो रही है। दोनों के बीच सहज केमिस्ट्री है, जो कई दृश्यों को बेमिसाल बना देती है। रियल लाइफ की दुविधाएं, शर्म और सपने इनके किरदारों में साफ नजर आते हैं। खासतौर से, जब पारिवारिक रस्मों-रिवाज़ मधु की सोच पर पहरे बिठाते हैं, वहाँ उनका विद्रोही पक्ष हर मिडिल क्लास लड़की से जुड़ जाता है।
लेकिन स्क्रिप्ट की कमज़ोरी बार-बार कहानी को मूल मुद्दे से भटका देती है। कई जगह ये फिल्म पारिवारिक ड्रामा और मेलोड्रामा में उलझ जाती है, जहाँ प्रेम कहानी दब जाती है और दर्शक कनेक्ट खो बैठते हैं। लेखक कई सामाजिक मुद्दे उठाते तो हैं, लेकिन उनको गहराई से पकड़ नहीं पाते। जिस साहसिकता से ये फिल्म मिडिल-एज रोमांस और महिलाओं के अपने हक की खोज के ऊपर रौशनी डाल सकती थी, वह मौके चूक जाती है।
सोशल मीडिया पर लोग फिल्म की सच्चाई को रेखांकित कर रहे हैं। दर्शकों को कहानी की खामियां जरूर दिखीं, लेकिन श्रीरेणु-मधु की जोड़ी और समाज के दबावों की असली तस्वीर ने भावनात्मक जुड़ाव बना लिया। खासतौर पर मध्य वर्ग के वो पुरुष और महिलाएं, जो आये दिन ऐसे ही सवालों और फैमिली प्रेशर से दो-चार होते हैं, उन्हें ये फिल्म आईना दिखाती है।
फातिमा सना शेख और माधवन का काम पूरी फिल्म को संभाले रखता है, भले ही पटकथा बार-बार फिसलती है। फिल्म के अहम पल यह याद दिलाते हैं कि असली मुसीबतें अक्सर हमारे अपने ही घर की चारदीवारी के भीतर से आती हैं।
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